मेरी कविताएँ
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आजकल के लोग ऊपर से कुछ और,
अन्दर से कुछ और नजर आते हैं।
दिल में रखते हैं वो कुछ और,
लेकिन मुँह से कुछ और बताते हैं।
मन ही मन काट करते रहते हैं,
लेकिन ऊपर से प्यार जताते हैं।
छिपकर दुश्मन की तरह वार करते हैं,
और सामने अपनापन दिखाते हैं।
जिन्हें हम समझते हैं अपना,
वो ही एक दिन हमे सताते हैं।
हमारी खुशी देखकर जलते हैं वो,
फिर भी हमदर्दी जताते हैं।
यही तो मुश्किल पड़ जाती है,
कि हम दुश्मन को पहचान नहीं पाते हैं।
जमाना है आजकल ऐसे ही लोगों का,
फिर भी न जाने क्यों लोग दोस्त बना
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